।। दोहा ।।
रामानुज पदकमल का, मन में धर कर ध्यान।
श्रीनिवास भगवान का, करें विमल गुण गान ।।
तिरुपति की महिमा बड़ी, गाते वेद-पुरान ।
कलियुग में प्रत्यक्ष हैं, वेंकटेश भगवान ।।
।। चौपाई ।।
जय श्रीवेंकटेश करुणा कर । श्रीनिवास स्वामी सुख सागर ।।
जय जय तिरुपति धाम निवासी । अखिल लोक स्वामी अविनाशी ।।
जय श्रीवेंकटेश भगवाना । करुणा सागर कृपा निधाना ।।
सप्तगिरि शेषाचल वासी । तिरुपति पर्वत शिखर निवासी ।।
श्री दर्शन महिमा अति भारी । आते नित लाखों नर नारी ।।
देव ऋषि गंधर्व जगाते । सुप्रभात सब मिल कर गाते ।।
सकल सृष्टि के प्राणी आवें । सुप्रभात शुभ दर्शन पावें ।।
विश्वरूप दर्शन सुखकारी । श्रीविग्रह की शोभा भारी ।।
वेद पुराण शास्त्र यश गावें । अति दुर्लभ दर्शन बतलावें ।।
जिन पर प्रभु कृपा करते हैं । उनको यह दर्शन मिलते हैं ।।
महा विष्णु श्रीमन्नारायण । भक्तों के कारज सारायण ।।
शेषाचल पर सदा विराजे । शंख चक्र कर सुन्दर साजे ।।
अभय हस्त की मुद्रा प्यारी । सफल कामना करती सारी ।।
वेंकटेश प्रभु तिरुपति बाला । शरणागत रक्षक प्रतिपाला ।।
श्रीवैकुण्ठ लोक निज तज कर । श्रीस्वामी पुष्करिणी तट पर ।।
भक्त कार्य करने को आये । कलियुग में प्रत्यक्ष कहाये ।।
स्वामी तीर्थ पुण्यप्रद पावन । स्नान मात्र सब पाप नशावन ।।
जो इसमें करते हैं स्नान । उनको मिलता पुण्य महान ।।
प्रथम यहां दर्शन अधिकारी । श्रीवराह स्वामी सुखकारी ।।
पहले दर्शन इनका करके । भू-वराह को प्रथम सुमिर के ।।
श्रीवेंकटेश चरण चित धरना । श्रीनिवास के दर्शन करना ।।
वेंकटेश सम इस कलियुग में । अन्य देव नहीं इस जग में ।।
पहले भी नहीं हुआ कहीं है । आगे हो यह सत्य नहीं है ।।
‘ओऽम्’ नम: श्रीवेंकटबाला । भक्तजनों के तुम रखवाला ।।
भक्त जहां अगणित नित आते । सोना चांदी नकद चढ़ाते ।।
श्रद्धा से कर हुण्डी सेवा । सेवा से पाते सब मेवा।।
श्रीनिवास की सुन्दर मूर्ति । मनोकामना करती पूर्ति ।।
दर्शन कर हर्षित सब तन मन । सुन्दर सुखद सुशोभित दर्शन ।।
दिव्य मधुर सुन्दर प्रसाद है । ‘लड्डू’ अमृत दिव्य स्वाद है ।।
महाप्रसाद दिव्य जो पाते । उनके पाप सभी कट जाते ।।
महिमा अति प्रसाद की भारी । मिटती भव बाधायें सारी ।।
केशर-चंदन युत चरणामृत । दिव्य सुगन्धित प्रभु का तीरथ ।।
तीर्थ-प्रसाद भक्त जो पाते । आवागमन मुक्त हो जाते ।।
‘चौरासी’ में फिर नहीं आते। जो प्रसाद ‘लड्डू’ का पाते ।।
सुख संपत्ति वांछित फल पावे । फिर वैकुण्ठ लोक में जावे ।।
‘वें’ का अर्थ पाप बतलाया । ‘कट’ का अर्थ काट दे माया ।।
माया पाप काटने वाला । वेंकटेश प्रभु तिरुपति बाला ।।
श्रीनिवास विष्णु अवतारा । महिमा जानत है जग सारा ।।
जो यह श्री चालीसा गावे । सकल पदारथ जग के पावे ।।
शब्द पुष्प श्री चरण चढ़ाकर । करे प्रार्थना भक्त ‘गदाधर’ ।।
।। दोहा ।।
जय जय श्रीतिरुपति-पति श्रीनिवास भगवान ।
करो सिद्ध सब कामना स्वामी कृपा निधान ।।