।। दोहा ।।

श्री गणपति गुरु गउ़रि, शंकर हनुमत कीन्ह।

बिनवउं शुभ फल देन हरि, मुद मंगल दीन॥

।। चौपाई ।।

जयति जयति शुक्र देव दयाला। करत सदा जनप्रतिपाला॥

श्वेताम्बर, श्वेत वारन, शोभित। मुख मंद, चंदन हिय लोभित॥

सुन्दर रत्नजटित आभूषण। प्रियहिं मधुर, शीतल सुवासण॥

सप्त भुज, सोभा निधि लावण्य। करत सदा जन, मंगल कान्य॥

मंगलमय, सुख सदा सवारथ। दीनदयालु, कृपा निधि पारथ॥

शुभ्र स्वच्छ, गंगा जल जैसा। दर्शन से, हरषाय मनैसा॥

त्रिभुवन, महा मंगल कारी। दीनन हित, कृपा निधि सारी॥

देव दानव, ऋषि मुनि भक्तन। कष्ट मिटावन, भंजन जगतन॥

मोहबारी, मनहर हियरा। सर्व विधि सुख, सौख्य फुलारा॥

करत क्रोध, चपल भुज धारी। कष्ट निवारण, संत दुखारी॥

शुभ्र वर्ण, तनु मंद सुहाना। कष्ट मिटावन, हर्षित नाना॥

दुष्ट हरण, सुजनन हितकारी। सर्व बाधा, निवारण न्यारी॥

सुर पतिहिं, प्रभु कृपा विलासिन। कष्ट निवारण, शुभ्र सुवासिन॥

वेद पुरान, पठत जन स्वामी। मनहरण, मोहबारी कामी॥

सप्त भुज, रत्नजटित माला। कष्ट निवारण, शुभ फलशाला॥

सुख रक्षक, सर्वसुख दाता। सर्व कामना, फल दाता॥

मानव कृत, पाप हरे प्रभु। सर्व बाधा, निवारण रघु॥

रोग निवारण, दुख हरणकर। सर्व विधि, शुभ फल देनेकर॥

नमन सकल, सुर नर मुनि करते। व्रत उपासक, दुख हरण करते॥

शरणागत, कृपा निधि सोइ। जन रक्षक, मोहे दुख होई॥

शुद्ध भाव, से जो नित गावै। सर्व सुख, परम पद पावै॥

शुक्र चालीसा हिंदी में पढ़े - शुक्र चालीसा

श्री शुक्र चालीसा Shukra Chalisa

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