।। दोहा ।।
पार्श्वनाथ भगवान की, मूरत चित्त बसाय,
भैरव चालीसा पढूँ, गाता मन हर्षाय ॥
।। चौपाई ।।
नाकोडा भैरव सुखकारी, गुण गाये ये दुनिया सारी ॥१॥
भैरव की महिमा अति भारी, भैरव नाम जपे नर – नारी ॥२॥
जिनवर के हैं आज्ञाकारी, श्रद्धा रखते समकित धारी ॥३॥
प्रातः उठ जो भैरव ध्याता, ऋद्धि सिद्धि सब संपत्ति पाता ॥४॥
भैरव नाम जपे जो कोई, उस घर में निज मंगल होई ॥५॥
नाकोडा लाखों नर आवे, श्रद्धा से परसाद चढावे ॥६॥
भैरव – भैरव आन पुकारे, भक्तों के सब कष्ट निवारे ॥७॥
भैरव दर्शन शक्ति – शाली, दर से कोई न जावे खाली ॥८॥
जो नर नित उठ तुमको ध्यावे, भूत पास आने नहीं पावे ॥९॥
डाकण छूमंतर हो जावे, दुष्ट देव आडे नहीं आवे ॥१०॥
मारवाड की दिव्य मणि हैं, हम सब के तो आप धणी हैं ॥११॥
कल्पतरु है परतिख भैरव, इच्छित देता सबको भैरव ॥१२॥
आधि व्याधि सब दोष मिटावे, सुमिरत भैरव शान्ति पावे ॥१३॥
बाहर परदेशे जावे नर, नाम मंत्र भैरव का लेकर ॥१४॥
चोघडिया दूषण मिट जावे, काल राहु सब नाठा जावे ॥१५॥
परदेशा में नाम कमावे, धन बोरा में भरकर लावे ॥१६॥
तन में साता मन में साता, जो भैरव को नित्य मनाता ॥१७॥
मोटा डूंगर रा रहवासी, अर्ज सुणन्ता दौड्या आसी ॥१८॥
जो नर भक्ति से गुण गासी, पावें नव रत्नों की राशि ॥१९॥
श्रद्धा से जो शीष झुकावे, भैरव अमृत रस बरसावे ॥२०॥
मिल जुल सब नर फेरे माला, दौड्या आवे बादल – काला ॥२१॥
वर्षा री झडिया बरसावे, धरती माँ री प्यास बुझावे ॥२२॥
अन्न – संपदा भर भर पावे, चारों ओर सुकाल बनावे ॥२३॥
भैरव है सच्चा रखवाला, दुश्मन मित्र बनाने वाला ॥२४॥
देश – देश में भैरव गाजे, खूटँ – खूटँ में डंका बाजे ॥२५॥
हो नहीं अपना जिनके कोई, भैरव सहायक उनके होई ॥२६॥
नाभि केन्द्र से तुम्हें बुलावे, भैरव झट – पट दौडे आवे ॥२७॥
भूख्या नर की भूख मिटावे, प्यासे नर को नीर पिलावे ॥२८॥
इधर – उधर अब नहीं भटकना, भैरव के नित पाँव पकडना ॥२९॥
इच्छित संपदा आप मिलेगी, सुख की कलियाँ नित्य खिलेंगी ॥३०॥
भैरव गण खरतर के देवा, सेवा से पाते नर मेवा ॥३१॥
कीर्तिरत्न की आज्ञा पाते, हुक्म – हाजिरी सदा बजाते ॥३२॥
ऊँ ह्रीं भैरव बं बं भैरव, कष्ट निवारक भोला भैरव ॥३३॥
नैन मूँद धुन रात लगावे, सपने में वो दर्शन पावे ॥३४॥
प्रश्नों के उत्तर झट मिलते, रस्ते के संकट सब मिटते ॥३५॥
नाकोडा भैरव नित ध्यावो, संकट मेटो मंगल पावो ॥३६॥
भैरव जपन्ता मालम – माला, बुझ जाती दुःखों की ज्वाला ॥३७॥
नित उठे जो चालीसा गावे, धन सुत से घर स्वर्ग बनावे ॥३८॥
।। दोहा ।।
भैरु चालीसा पढे, मन में श्रद्धा धार ।
कष्ट कटे महिमा बढे, संपदा होत अपार ॥ ३९॥
जिन कान्ति गुरुराज के, शिष्य मणिप्रभ राय ।
भैरव के सानिध्य में, ये चालीसा गाय ॥ ४०॥