।। दोहा ।।
बाबा हरसू ब्रह्म के, चरणों का करि ध्यान।
चालीसा प्रस्तुत करूँ, पावन यश गुण गान।।
।। चौपाई ।।
हरसू ब्रह्म रूप अवतारी। जेहि पूजत नित नर अरु नारी।।
शिव – अनवद्य अनामय रूपा। जन – मंगल हित शिला स्वरूपा।।
विश्व – कष्ट – तम – नाशक जोई। ब्रह्म धाम मँह राजत सोइ।।
निर्गुण निराकार जग व्यापी। प्रकट भये बन – ब्रह्म प्रतापी।।
अनुभव गम्य प्रकाश स्वरूपा। सोई शिव प्रकट ब्रह्म के रूपा।।
जगत – प्राण जग जीवन दाता। हरसू ब्रह्म हुए विख्याता।।
पालन हरण सृजन कर जोई। ब्रह्म रूप धरि प्रकटेउ सोई।।
मन बच अगम अगोचर स्वामी। हरसू ब्रह्म सोई अंतरयामी।।
भव जन्मा त्यागा सब भव रस। शित निर्लेप अमान एक रस।।
चैनपुर सुखधाम मनोहर। जहाँ विराजत ब्रह्म निरन्तर।।
ब्रह्म तेज वर्धित तव क्षण क्षण। प्रमुदित होत निरन्तर जन मन।।
द्विज द्रोही नृप को तुम नासा। आज मिटावत जन मन त्रासा।।
दे सन्तान सृजन तुम करते। कष्ट मिटाकर जन भय हरते।।
सब भक्तन के पालक तुम हो। दनुज वृति कुल घालक तुम हो।।
कुष्ट रोग से पीड़ित होई। आवे सभय शरण तकि सोई।।
भक्षण करे भभूत तुम्हारा। चरण गहे नित बारहिं बारा।।
परम रूप सुन्दर सोई पावै। जीवन भर तव यश नित गावै।।
पागल बन विचार जो खोवै। देखत कबहुँ हँसे फिर रोवै।।
तुम्हरे निकट आव जब सोई। भूत – पिशाच ग्रस्त उर होई।।
तुम्हरे धाम आई सुख माने। करत विनय तुमको पहिचाने।।
तव दुर्धष तेज के आगे। भूत पिशाच विकल होई भागे।।
नाम जपत तव ध्यान लगावत। भूत पिशाच निकट नहीं आवत।।
भांति – भांति के कष्ट अपारा। करि उपचार मनुज जब हारा।।
हरसू ब्रह्म के धाम पधारे। श्रमित – भ्रमित जन – मन से हारे।।
तव चरणन परि पूजा करई। नियत काल तक व्रत अनुसरई।।
श्रद्धा अरु विश्वास बटोरी। बांधे तुमहि प्रेम की डोरी।।
कृपा करहु तेहि पर करुणाकर। कष्ट मिटे लौटे प्रमुदित घर।।
वर्ष – वर्ष तव दर्शन करहीं। भक्ति भाव श्रद्धा उर भरहीं।।
तुम व्यापक सबके उर अंतर। जानहु भाव कुभाव निरन्तर।।
मिटे कष्ट नर अति सुख पावे। जब तुमको उर – मध्य बिठावे।।
करत ध्यान अभ्यास निरन्तर। तब होइहहिं प्रकाश उर अंतर।।
देखहहिं शुद्ध स्वरूप तुम्हारा। अनुभव गम्य विवेक सहारा।।
सदा एक रस जीवन भोगी। ब्रह्म रूप तब होइहहिं योगी।।
यज्ञ स्थल तब धाम शुभ्रतर। हवन यज्ञ जहँ होत निरंतर।।
सिद्धासन बैठे योगी जन। ध्यान मग्न अविचल अन्तर्मन।।
अनुभव करहिं प्रकाश तुम्हारा। होकर द्वैत भाव से न्यारा।।
पाठ करत बहुधा सकाम नर। पूर्ण होत अभिलाषा – शीघ्रतर।।
नर – नारी गण युग कर जोरे। विनवत चरण परत प्रभु तोरे।।
भूत पिशाच प्रकट होई बोले। गुप्त रहस्य शीघ्र ही खोले।।
ब्रह्म तेज तव सहा न जाई। छोड़ देह तब चले पराई।।
।। दोहा ।।
पूर्ण काम हरसू सदा, पूरण कर सब काम।
परम तेजमय बसहु तुम, भक्तन के उर धाम।।