।। दोहा ।।

या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नमः।।

।। चौपाई ।।

नमो नमो दुर्गे सुख करनी। नमो नमो अंबे दुःख हरनी।।

निराकार है ज्योति तुम्हारी । तिहूं लोक फैली उजियारी।।

शशि ललाट मुख महा विशाला। नेत्र लाल भृकुटी विकराला ।।

रूप मातुको अधिक सुहावे। दरश करत जन अति सुख पावे ।।

तुम संसार शक्ति मय कीना । पालन हेतु अन्न धन दीना ।।

अन्नपूरना हुई जग पाला । तुम ही आदि सुंदरी बाला ।।

प्रलयकाल सब नासन हारी। तुम गौरी शिव शंकर प्यारी ।।

शिव योगी तुम्हरे गुण गावैं। ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावै।।

रूप सरस्वती को तुम धारा । दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा।।

धरा रूप नरसिंह को अम्बा । परगट भई फाड़कर खम्बा ।।

रक्षा करि प्रहलाद बचायो । हिरणाकुश को स्वर्ग पठायो ।।

लक्ष्मी रूप धरो जग माही। श्री नारायण अंग समाहीं । ।

क्षीरसिंधु मे करत विलासा । दयासिंधु दीजै मन आसा ।।

हिंगलाज मे तुम्हीं भवानी। महिमा अमित न जात बखानी ।।

मातंगी धूमावति माता। भुवनेश्वरी बगला सुख दाता ।।

श्री भैरव तारा जग तारिणी। क्षिन्न भाल भव दुःख निवारिणी ।।

केहरि वाहन सोहे भवानी। लांगुर वीर चलत अगवानी ।।

कर मे खप्पर खड्ग विराजै । जाको देख काल डर भाजै ।।

सोहे अस्त्र और त्रिशूला। जाते उठत शत्रु हिय शूला ।।

नगर कोटि मे तुमही विराजत। तिहुं लोक में डंका बाजत ।।

देवीदास शरण निज जानी। करहु कृपा जगदम्ब भवानी ।।

।। दोहा ।।

शरणागत रक्षा कर, भक्त रहे निःशंक ।

मैं आया तेरी शरण में, मातु लीजिए अंक।।

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श्री दुर्गा चालीसा Durga Chalisa

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