।। दोहा ।।
शैल शिखर सम्मेत के, सांवलिया जिनराज।
निशदिन मेरी वंदना, तारण-तरण जहाज ॥दोहा॥
।। चौपाई ।।
तीरथ रक्षक देव भोमिया। साथ निभावे देव भोमिया ॥1॥
इक कर शस्तर इक कर खप्पर। देव भोमिया सबको सुखकर ॥2॥
पुव्व देश के भैरूं कहाते। सुमिरत झटपट दौड़े आते ॥3॥
भटके राही पथ पा जाते। जो भैरूं का ध्यान लगाते ॥4॥
क्षां क्षीं क्षूं क्षौं नमः भोमिया। सरल सहज है देव भोमिया ॥5॥
लेते कुछ ना, सब कुछ देते। देख भगत मुस्काते हेते ॥6॥
हेत भरेली नजर सुहानी। बाबा तेरी अजब कहानी ॥7॥
भक्तों पर किरपा है पूरी। इच्छा कोई न रहे अधूरी ॥8॥
रिमझिम रिमझिम बरसे सावन। भक्त गृहों का महके आंगन ॥9॥
संकट मेटे कष्ट निवारे। बाबा है सच्चे रखवारे ॥10॥
जो मन से नित जाप करेगा। वैभव-कोष अखंड लहेगा ॥11॥
चमत्कार बाबा का भारी। ध्यान जाप करते नर-नारी ॥12॥
जो जीवन में शांति चाहो। तो बाबा को निशदिन ध्याओ ॥13॥
हाथ जोड़ यात्रा जो करते। उनकी सारी पीड़ा हरते ॥14॥
यात्रा पूरण होती सुख में। मिट जाता श्रम सारा पल में ॥15॥
पार्श्वनाथ के आज्ञाकारी। देव भोमिया समकितधारी ॥16॥
परतिख जग में देव भोमिया। पर-हितकारी देव भोमिया ॥17॥
जन-जन के हैं प्यारे देवा। सेवा से नित लहते मेवा ॥18॥
डमडम-डमडम डमरू बाजे। सेवा में सुर सहज बिराजे ॥19॥
कडड-कडड कड चमके दमिनी। बरसत नभ मंडल से अगनी ॥20॥
भक्त हृदय तिहां थर-थर कंपे। जपत भोमिया तब मन जंपे ॥21॥
लहर हरख की दौड़ी आवे। भक्ति पूजना चित्त रमावे ॥22॥
पल में होवे डर छूमंतर। देव भोमिया है अभयंकर ॥23॥
सेवे सहस हजारों सुरनर। जाप जपे नित श्रद्धा भर कर ॥24॥
एक विनंती तुझ दरबारे। सपन करो साकार हमारे ॥25॥
रक्त वर्ण मुख मंडल सोहे। भक्त जनों के मन को मोहे ॥26॥
किरपा हो जावे जो तेरी। नैया पार लगादे मेरी ॥27॥
मंत्र जपे श्रद्धा से तेरा। भूत बनत सेवक अदकेरा ॥28॥
जाप करे जो नर रविवारे। कारज निपजे पल में सारे ॥29॥
नित उठ शत अठ ध्यान लगावे। प्रेत पिशाच समीप न आवे ॥30॥
और द्वार अब नांहि भटकना । द्वार भोमिया हाजिर रहना ॥31॥
भक्तों का नित आता रेला। भक्ति भाव का लगता मेला ॥32॥
विद्युत् सम तेजस्वी देवा। ज्योर्तिधर वरदायी देवा ॥33॥
वासचूर्ण जिनहर्ष उछाले। बाबा धारे रूप निराले ॥34॥
गादी सुवरण आप बिराजे । बाबा नाम जगत में गाजे ॥35॥
दोय सहस तिहुतर शुभ वरसे । पौष सुदि पांचम दिन हरसे ॥36॥
“कांति मणिप्रभ” ने लिखा, चालीसा सुखकार।
देव भोमिया ने दिया, दरिसन मंगलवार ॥37॥
पाठ करे श्रद्धा धरी, जो दिन में इक बार ।
देश निकाला दु:ख का, हो जावे तिणवार ॥38॥
वार सूर्य को जो करे, पाठ एक शत आठ।
तस घर जीवन भर रहे, अनुपम सुख का ठाट ॥39॥
करदो किरपा भोमिया, सुन विनती हे देव !
जीवन में शांति रहे, पावे मंगलमेव ॥40॥