।। दोहा ।।
बांकी चितवन कटि लचक, बांके चरन रसाल ।
स्वामी श्री हरिदास के बांके बिहारी लाल ।।
।। चौपाई ।।
जै जै जै श्री बाँकेबिहारी । हम आये हैं शरण तिहारी ।।
स्वामी श्री हरिदास के प्यारे । भक्तजनन के नित रखवारे ।।
श्याम स्वरूप मधुर मुसिकाते । बड़े-बड़े नैन नेह बरसाते ।।
पटका पाग पीताम्बर शोभा । सिर सिरपेच देख मन लोभा ।।
तिरछी पाग मोती लर बाँकी । सीस टिपारे सुन्दर झाँकी ।।
मोर पाँख की लटक निराली । कानन कुण्डल लट घुँघराली ।।
नथ बुलाक पै तन-मन वारी । मंद हसन लागै अति प्यारी ।।
तिरछी ग्रीव कण्ठ मनि माला । उर पै गुंजा हार रसाला ।।
काँधे साजे सुन्दर पटका । गोटा किरन मोतिन के लटका ।।
भुज में पहिर अँगरखा झीनौ । कटि काछनी अंग ढक लीनौ ।।
कमर-बांध की लटकन न्यारी । चरन छुपाये श्री बाँकेबिहारी ।।
इकलाई पीछे ते आई । दूनी शोभा दई बढाई ।।
गद्दी सेवा पास बिराजै । श्री हरिदास छवी अतिराजै ।।
घंटी बाजे बजत न आगै । झाँकी परदा पुनि-पुनि लागै ।।
सोने-चाँदी के सिंहासन । छत्र लगी मोती की लटकन ।।
बांके तिरछे सुधर पुजारी । तिनकी हू छवि लागे प्यारी ।।
अतर फुलेल लगाय सिहावैं । गुलाब जल केशर बरसावै ।।
दूध-भात नित भोग लगावैं । छप्पन-भोग भोग में आवैं ।।
मगसिर सुदी पंचमी आई । सो बिहार पंचमी कहाई ।।
आई बिहार पंचमी जबते । आनन्द उत्सव होवैं तबते ।।
मैं हूँ सेवक नाथ तुम्हारो । बालक के अपराध बिसारो ।।
मोकूँ जग संकट ने घेरौ । तुम बिन कौन हरै दुख मेरौ ।।
विपदा ते प्रभु आप बचाऔ । कृपा करो मोकूँ अपनाऔ ।।
श्री अज्ञान मंद-मति भारि । दया करो श्रीबाँकेबिहारी ।।
बाँकेबिहारी विनय पचासा । नित्य पढ़ै पावे निज आसा ।।
पढ़ै भाव ते नित प्रति गावैं । दुख दरिद्रता निकट नही आवैं ।।
धन परिवार बढैं व्यापारा । सहज होय भव सागर पारा ।।
कलयुग के ठाकुर रंग राते । दूर-दूर के प्रेमी आते ।।
दर्शन कर निज हृदय सिहाते । अष्ट-सिध्दि नव निधि सुख पाते ।।
मेरे सब दुख हरो दयाला । दूर करो माया जंजाल ।।
दया करो मोकूँ अपनाऔ । कृपा बिन्दु मन में बरसाऔ ।।
।। दोहा ।।
ऐसी मन कर देउ मैं , निरखूँ श्याम-श्याम ।
प्रेम बिन्दु दृग ते झरें, वृन्दावन विश्राम ।।
जय श्री बाँकेबिहारी जी महाराज की
जय श्रीराधिका रानी महारानी की जय
जय श्री हरिदास जी महाराज की जय