।। दोहा ।।
आदि गुरू ओंकार को, सुमिरें हृदय विचार।
नमन करें गुरूदेव को, जो दायक फल चार।।
सेवक अपना जान के, कृपा करो भगवान।
क्षमा करो अपराध को, गुरूवर दिव्य महान।।
।। चौपाई ।।
जय जय जय ओंकार विधाता। जय जय जय सुखेस सुदाता।।
जग पालक जग सिरजन हारा। रूद्र रूप धरि करे संहारा।।
‘ओम् खं ब्रह्म’ यह वेद बखाने। ‘ओम् तत्सत्’ यह गीता माने।।
प्रणव ओम् और ऊद् गीथा। ब्रह्म वाचक तीनो सुपुनीता।।
‘प्र’ प्रकृति और ‘नव’ है नौका। ‘प्रणव’ नाव तारक है भौ का।।
है प्र प्रपंच, ‘न-व’ नहीं बतावे। ‘प्रणव’ प्रपंच को दूर हटावे।।
सभी प्राणि का प्राण अधारा। ‘प्रणव’ हुआ प्राणों से प्यारा।।
यह शब्द ब्रह्म आदी ओंकारा। तैजस प्राज्ञ वैशवा नारा।।
उच्च सुस्वर गावे उद्गाता। यज्ञ का पूरक सब का त्राता।।
प्रणव भेद कहते विसतारा। स्थूल सूक्ष्म कह सूत विचारा।।
‘नम: शिवाय’ यह मंत्र स्थूला। यही मंत्र हरे दुःख सूला।।
एकाक्षर ॐ सूक्ष्म दो भेदा। गृही विरक्त मिटावे खेदा।।
सुनो अ उ म् यह हरस्व कहावे। पूजें प्रवृत पुराण बतावे।।
सभी मनोरथ सुख का दाता। रखते प्रवृत्त जग से नाता।।
ये पाँच अ उ म नाँद अरू बिन्दू। त्री कला काल शब्द योगेन्दू।।
आठ मिली यह दीर्घ कहावे। यति योगि के हृदय जो भावे।।
निवृत्ति मार्ग के अनूगामी। मोक्ष पाय पावें सुख स्वामी।।
‘ओम् समर’ वेद कहे भाई। ‘ओम’ जपन दुःख पार लगाई।।
प्रणव धनूष जीव के बाणा। ब्रह्म लक्ष्य करी बेधू निशाना।।
पावन ओम की यही व्यवस्था। जागत सोवत सुसुप्त अवस्था।।
चतुर्थ अमात्र नहीं व्यवहारा। प्रपंच रहित शीव एक अधारा।।
गुरू पिप्पलाद शिष्य सतकामा। ‘ओम’ उपदेश दिन्ह गुरू नामा।।
एक मात्रा ध्यान जेहि लावे। ऋग्वेद से महीमा पावे।।
दो मात्रा मन करे विचारा। गहे यजुर से चन्द अधिकारा।।
तीन मात्रा ‘ओम’ जो ध्यावे। सामवेद से ब्रह्म को पावे।।
छान्दोग्य यह कथा बतावे। मृत्यु देवन को लगा सतावे।।
वेद शरण गेहे सब देवा। मृत्यु जाई ढूंढ़ तेहि लेवा।।
अन्त में ओम् शरण जब लीन्हा। मृत्यु देवन त्रास नहीं दीन्हा।।
अबहूँ ओम् शरण जे जाई। देव समान अमर पद पाई।।
‘ओम्’ मंत्र शिवशंकर दीन्हा। गौरी मंत्र हृदय से लीन्हा।।
कठ में यम नचिकेत सिखावे। नर ‘ओम्’ नाम से मुक्ति पावे।।
सब आदी मध्य अन्त ओंकारा। गति देवे ब्रह्मांड यह सारा।।
जीव मात्र का यही अधारा। सबसे न्यारा सबसे प्यारा।।
ऋद्धि-सिद्धि का है यह दाता। सन्त समाज का अद्भुत त्राता।।
दुःख दारिद्र निकट नहीं आवे। ‘ओम्’ नाम जब हृदय समावे।।
रोग दीनता नाशन हारा। भूत पिशाच विनाशन हारा।।
सभी मनोरथ सुख का दाता। करो ‘ओम्’ से अपना नाता।।
सभी जाति के नर अरू नारी। ‘ओम्’ जपन के हैं अधिकारी।।
ओंकार चलीसा जेहि गावे। सब सुख भोग परम पद पावे।।
‘ओंकारनन्द’ का एक सहारा। सुमिरि ‘ओम्’ भव उतरे पारा।।
।। दोहा ।।
वेद पुराण शास्त्र मिलि, करत ‘ओम’ गुणगान।
लोक परलोक की सम्पदा, देवे ‘ओम्’ महान।।
भगवान ओंकारेश्वर की जय।
इति श्री ओंकार चालीसा।