।। दोहा ।।
सब सिद्धों को नमन कर, सरस्वती को ध्याय |
चालीसा नवकार का, लिखूं त्रियोग लगाय ||
।। चौपाई ।।
महामंत्र नवकार हमारा, जन जन को प्राणों से प्यारा
मंगलमय यह प्रथम कहा हैं, मंत्र अनधि निधन महा हैं
षटखंडागम में गुरुवर ने, मंगलाचरण लिखा प्राकृत में
यही से ही लिपिबद्ध हुआ हैं, भविजन ने उर धार लिया हैं
पांचो पद के पैतीस अक्षर, अट्ठावन मात्राए हैं सुखकर
मंत्र चौरासी लाख कहाए, इससे ही निर्मित बतलाए
अरिहंतो को नमन किया हैं, मिथ्यातम का वमन किया हैं
सब सिद्धो को वन्दन करके, झुक जाते भावों में भरकर
आचार्यों की पद भक्ति से, जीव उबरते नीज शक्ति से
उपाध्याय गुरुओं का वन्दन, मोह तिमिर का करता खंडन
सर्व साधुओ को मन में लाना, अतिशयकारी पुन्य बढ़ाना
मोक्षमहल की नीव बनाता, अतः मूल मंत्र कहलाता
स्वर्णाक्षर में जो लिखवाता, सम्पति से टूटे नहीं नाता
णमोकार की अद्भुत महिमा, भक्त बने भगवन ये गरिमा
जिसने इसको मन से ध्याया, मनचाहा फल उसने पाया
अहंकार जब मन का मिटता, भव्य जीव तब इसको जपता .
मन से राग द्वेष मिट जाता, समता बाव ह्रदय में आता
अंजन चोर ने इसको ध्याया, बने निरंजन निज पद पाया
पार्श्वनाथ ने इसको सुनाया, नाग-नागिनी सुर पद पाया
चाकदत्त ने अज की दीना, बकरा भी सुर बना नवीना
सूली पर लटके कैदी को, दिया सेठ ने आत्मशुद्धि को
हुई शांति पीड़ा हरने से, देव बना इसको पढ़ने से
पदमरुची के बैल को दीना, उसने भी उत्तम पद लीना
श्वान ने जीवन्धर से पाया, मरकर वह भी देव कहाया
प्रातः प्रतिदिन जो पढ़ते हैं, अपने दुःख संकट हराते हैं
जोन नवकार की भक्ति करते, देव भी उनकी सेवा करते
जिस जिसने इसे जपा हैं, वही स्वर्ण सैम खूब तप हैं
तप-तप कर कुंदन बन जाता, अंत में मोक्ष परम पद पाटा
जो भी कंठहार कर लेता, उसको भव-भव में सुख देता
जिसने इसको शीश पर धारा, उसने ही रिपु कर्म निवारा
विश्वशान्ति का मूल मंत्र हैं, भेदज्ञान का महामंत्र हैं
जिसने इसका पाठ कराया, वचन सिद्धि को उसने पाया
खाते-पीते-सूते जपना, चलते-फिरते संकट हराना
क्रोध अग्नि का बल घट जावे, मंत्र नीर शीतलता लावे
चालीसा जो पढ़े पढावे, उसका बेडा पार हो जावे
क्षुल्लकमणि शीतलसागर ने, प्रेरित किया लिखा ‘अरुण’ न
तीन योग से शीश नवाऊ, तीन रतन उत्तम पा जाऊं
पर पदार्थ से प्रीत हटाऊं, शुद्धतम के ही गुण गाऊ
हे प्रभु! बस यही वर चाहूँ, अंत समय नवकार ही ध्याऊ
एक-एक सीधी चढ़ जाऊं, अनुक्रम से निजपद पा जाऊं
पंच परम परमेष्ठी हैं, जग में विख्यात
नमन करे जो भाव से, शिव सुख पा हर्षात ||