।। दोहा ।।
जय-जय मंगल मोर, कृपा करो गुरु देव।
संकट सब हर हरो, करि मंगल सदा सेव॥
।। चौपाई ।।
जय मंगल ग्रह मुनि पूजित, शुभ फल दायक नाथ।
धातु रुधिर अधिदेव तम, शरणागत करे त्राण॥
रक्तवर्ण तन सुंदर, मस्तक मुकुट विराजत।
गदाहस्त त्रिनयन मनोहर, मंगल शुभफलदायक॥
अमित तेज, बल, मोह नाशक, पिंगल तन अति शोभित।
धरणी पुत्र अति, वैभवशाली, पाप-ताप सब हर्ता॥
अस्त्र, शस्त्र, गदा धारण कर, रजत सिंह पर सवार।
सप्त धातु का हो प्रदाता, वैद्य, विद्या सुधाकर॥
न्यायप्रिय, धर्मरत, भूतिहारी, मंद गति से विख्यात।
कुंडली दोष, अशुभ प्रभाव, जीवन में सब हरता॥
राजस्थान पूजित शिरोमणि, गुरु ग्रह का आभासक।
भक्त जनों का संकट हरते, तुम शुभ मंगलकारी॥
बुद्धिवर्धक, ज्ञानदायक, धर्म-अर्थ-काम प्रदायक।
तृण-ताप, विपदा हरो, करि सुखदायक मंगल॥
महाबली वीर विक्रम, तापत्रय हरो अपार।
मंगल ग्रह की कृपा से, सकल मंगल हो साधन॥
रोग-क्लेश, पीड़ा हरो, विद्या-बुद्धि बढ़ाओ।
शत्रु, समस्त भय हरो, मंगल मूर्ति विराजो॥
रूद्र रूप धर, दानव दलन, आप विनाशक दुष्ट।
शत्रु नाश, भय निवारण, मंगल भव भय हर्ता॥
धीर, वीर, मंगल रूप, संकट में संगी।
मंगलग्रह की कृपा से, सब मनोरथ पूर हो॥
शिव के चरणों में शीश नवायें, सुर मुनिजन वन्दित।
मंगल ग्रह कृपा करें, भक्त जीवन सफल हो॥
विघ्न, विपत्ति, संकट हरो, शुभ मंगल करि।
मंगल चालीसा जो पढ़े, सब संकट से मुक्त हो॥
।। दोहा ।।
जय-जय मंगल मोर, कृपा करो गुरु देव।
संकट सब हर हरो, करि मंगल सदा सेव॥
|| इति संपूर्णंम् ||