।। दोहा ।।
जसोलगढ़ में थे प्रकट्या महाराणी, पण है उजालो च्यारो मेर
जैसलमेर, जोधाणों थाने ध्यावे और आखो ध्यावे बीकानेर॥
म्हारी थाने है बिनती, थे रखिजो म्हारी लाज
थारी शरण में म्हे पड्या, हो माजीसा महाराज॥
।। चौपाई ।।
जय जय जय माता भटीयाणी, कृपा करो माँ जय कल्याणी ।
जो कोई शरण आप की आता, जीवन सफल वांछित फल पाता ॥
लाखो दु:खी माँ आपके तारे, आए रोते हुए जाए हंसते सारे ।
आपके द्वार पे जो भी आया, आकर वह कभी नहीं पछताया ॥
जो जीवन की छोड़ दे आशा, तिमिर नाश कर करो प्रकाशा ।
अनहोनी को होनी कर दो, रोतों की तुम झोली भर दो ॥
जसोलगढ़ है आपका धाम, नर-नारी ले आपका नाम ।
दूर दूर से धाम पे आते, मन-वांछित फल वे है पाते ॥
आपकी है निराली माया, कोढ़ी भी पावे कंचन काया ।
भुत-प्रेत सब आप से कांपे, जब भी नाम आप के जापे ॥
कटे रोग सब मिटे कलेशा, फिर नर निर्भय होए हंमेशा ।
जीवन-ज्योति आप है देते, दीन-दु:खी सब आप से लेते ॥
गौ-ब्राह्मण के हो रखवारे, इनके खातिर शत्रु संहारे ।
आप के तेज को नमस्कार है, इस कलियुग में चमत्कार है ॥
राठोड़ी बन्ना सा थारे सागे, ले घोड़ो थारे चाले आगे ।
ढोल मंजीरा नौबत बाजे, सुबह-शाम थारी आरती साजे ॥
हरेक धाम की शोभा न्यारी, झाड कहावे थारा पूजारी ।
लाल रंग थारे मन भावे, तारों की चूनड़ चीर कहावे ॥
आप हो चण्डी के अवतारी, थारी है महिमा अति भारी ।
दीपे आप की ज्योति निराली, कर दर्शन कोई जाए न खाली ॥
जीवन-दान आप है देते, बदले में श्रद्धा-सुमन ही लेते ।
भक्त आप के जब भी पुकारे, हाजिर हो कर दु:ख निवारे ॥
चुन-चुन दुष्टों को आप संहारो, भक्ति-भाव को आप उबारो ।
बल-बुद्धि के आप है दाता, हो साक्षात जग-जननी माता ॥
वचन आप के खाली न जाते, महा विपदा से आप बचाते ।
जो भी दर पे आप के आया, जो माँगा वैसा ही पाया ॥
बड़े-बड़े ज्ञानी महाज्ञानी, सबने बात आप की मानी ।
जानते सबके मन की बात, रक्षा करते दिन और रात ॥
जो राही पथ-भ्रष्ट हो जावे, आप की ज्योति से मंजिल पावे ।
हमने लिया है आप का शरना, आप हो रक्षक फिर क्या डरना ॥
जय भटीयाणी, जय कल्याणी, है शरण आप के हम सब प्राणी ।
आप के परचे है बड़े भारी, गुण गावे सब नर और नारी ॥
धूप दीप से सजे आरती, राठोड़ी बन्ना सा है सारथि ।
निकले जब भी माँ की सवारी, जय घोष करे जनता सारी ॥
शरण आप की हम पड़े है, माँ हम है छोटे आप बड़े है ।
आप की महिमा अपरम्पार है, हम मन्द-बुद्धि और अनाधार है ॥
क्षमा दान देना महाराणी, ह्रदय ज्ञान हो अमृतवाणी ।
जो कोई पढ़े यह रोज चालीसा, अन्न-धन्न लक्ष्मी दे माजीसा ॥
सच्चे मन से जो कोई ध्यावे, उसकी नैया पार लगावे ।
माँ सुणेंगे बिनती जन-पुकार की, जय बोलो जसोल दरबार की ॥
।। चौपाई ।।
भक्तियुक्त और सच्चे मन से, जो पढ़े चालीसा कोय ।
ता पर सदा महेरबानी, श्री माजीसा की होय ॥