।। दोहा ।।

अम्बा त्रिपुरमालिनी, दुःखहरनी सुखकार।

सती पूर जगतारिणी, विश्व की पालनहार।।

पूर शिवा शिवानी उमा, तुम्ही हो गौरी रूप।

महामाया तेरी माया, है जगत की छाया धूप।।

।। चौपाई ।।

जग वंदित त्रिभुवन की माता, तुम को आराधे विश्व विधाता।

घट-घट में माँ तेरा बसेरा, मंगलमई है दर्शन तेरा।।

छटा तुम्हारी है भव भय हारी, कष्ट निवारक महा सुखकारी।

दीन हीन की सदा सहाई, संकट हरनी बड़ा फलदायी।।

देवी तालाब माँ शहर जालन्धर, दिव्य आलोकिक जहाँ तेरा मंदिर।

शक्ति पीठ महाशक्ति तेरा, तोड़े दुःख संताप का घेरा।।

चरण शरण में जो कोई आता, वो पत्थर पारस हो जाता।

शंकर बल्लभा महासती अंगा, करुणा रस की तुम हो गंगा।।

कवच बनती हो तुम जिनका, बाल भी बांका होए न उनका।

जब तेरी करुणा दृष्टि होती, राहों के कंकर बनते मोती।।

तेरे भवन में हमने देखा, बदल है जाती भाग्य की रेखा।

तु रुद्राणी, तू ही महादाती, रंकों को पल में राजा बनाती।।

जनम जनम की चिंता हरती, सिद्ध मनोरथ सबके करती।

अपनी छाया में जिनको लेती, उनको विचारों से मिले मुक्ति।।

माथे लगा तेरे चरणों की धूली, भय नहीं देती यमों की भूल।

आनंदमूरत दीन दयाला, हम जपते तेरे नाम की माला।।

जीवन पथ की बाधा हरणा, मनोकामना पूरी माँ जग की।

आशा और निराशा सब है, तुम्हारा खेल तमाशा।।

सुख समृद्धि वैभव दायिनी, पूजा तेरी कल्याणकारिणी।

हर साधक को अन्न धन देती, सुख के अनगिनत साधन देती।।

करुणा का अमृत लगता ऐसे, मानसरोवर झील हो जैसे।

उसमें डुबकी जो भी लगाता, कागा हंस माँ हो है जाता।।

जब माँ तेरी प्रकाश होता, दुष्कर्मों का नाश होता।

हमें भी अपनी शरण में लेना, बल बुद्धि और ज्ञान देना।।

दुःखों का अंधकार मिटाना, जीवन का ज्योतिर्मय बनाना।

बारह ज्योतिर्लिंगों वाले, गंगाधर शिव भोले प्याले।।

जोत तेरी कण-कण के अंदर, तेरे आंचल की शीतल छाया।

भक्त मांगते हैं महामाया, कभी हमसे माँ दूर ना जाना।।

आपदा विपदा से बचाना, तेरे वरदान से है वरदाती।

दुर्लभ वस्तु सुलभ हो जाती, दुर्गम काज सुगम है बनते।।

शूल भी फूलों जैसे लगते, कर्म गति का चक्कर सारा।

तेरी माँ शक्ति से हारा, तू ही कुलों के दीप जलाती।।

कष्टों का अंधकार मिटाती, रोग शोक संताप हरती।

हरके अमंगल मंगल करती, देवी तालाब में बसने वाली।।

हमें बना दो शक्तिशाली, गायेंगे महिमा सदा तुम्हारी।

हर पल रक्षा करना हमारी, होए फलदायक तेरी भक्ति।।

देना दुःख जंजाल से मुक्ति, दुविधा की घनगौर घटाएं।

कभी न मय्या हम पर छाएं, करुणा तेरी निर्दोष न्यारी।।

मार्ग दर्शक रहे हमारी, आस के आँचल को भर देना।

मिट्टी को चन्दन कर देना, अम्बा त्रिपुरमालिनी सिद्ध करना।।

तेरे चरण सरोज में, कोटि-कोटि प्रणाम।

सुख शांति वैभव दे देना, रख लेना अपना ध्यान।।

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श्री त्रिपुरमालिनी चालीसा Tripurmalini Chalisa

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