।। दोहा ।।

शक्ति पीठ मां ज्वालपा धरूं तुम्हारा ध्यान ।

हृदय से सिमरन करूं दो भक्ति वरदान ॥

सुख वैभव सब दीजिए बनूं तिहारा दास ।

दया दृष्टि करो भगवती आपमें है विश्वास ॥

।। चौपाई ।।

नमस्कार हे ज्वाला माता । दीन दुखी की भाग्य विधाता ॥१॥

ज्योति आपकी जगमग जागे । दर्शन कर अंधियारा भागे ॥२॥

नव दुर्गा है रूप तिहारा । चौदह भुवन में दो उजियारा ॥३॥

ब्रह्मा विष्णु शंकर द्वारे । जै मां जै मां सभी उच्चारे ॥४॥

ऊंचे पर्वत धाम तिहारा । मंदिर जग में सबसे न्यारा ॥५॥

काली लक्ष्मी सरस्वती मां । एक रूप हो पार्वती मां ॥६॥

रिद्धि-सिद्धि चंवर डुलावें । आ गणेश जी मंगल गावें ॥७॥

गौरी कुंड में आन नहाऊं । मन का सारा मैल हटाऊं ॥८॥

गोरख डिब्बी दर्शन पाऊं । बाबा बालक नाथ मनाऊं ॥९॥

आपकी लीला अमर कहानी । वर्णन कैसे करें ये प्राणी ॥१०॥

राजा दक्ष ने यज्ञ रचाया । कंखल हरिद्वार सजाया ॥११॥

शंकर का अपमान कराया । पार्वती ने क्रोध दिखाया ॥१२॥

मेरे पति को क्यों ना बुलाया । सारा यज्ञ विध्वंस कराया ॥१३॥

कूद गई माँ कुंड में जाकर । शिव भोले से ध्यान लगाया ॥१४॥

गौरा का शव कंधे रखकर चले । नाथ जी बहुत क्रोध कर ॥१५॥

विष्णु जी सब जान के माया । चक्र चलाकर बोझ हटाया ॥१६॥

अंग गिरे जा पर्वत ऊपर । बन गए मां के मंदिर उस पर ॥१७॥

कोप किया दश कन्ध पे भारी । कुटम्ब संहारा सेना भारी ॥१८॥

बावन है शुभ दर्शन मां के । जिन्हें पूजते हैं हम जा के ॥१९॥

जिह्वा गिरी कांगड़े ऊपर । अमर तेज एक प्रगटा आकर ॥२०॥

जिह्वा पिंडी रूप में बदली । अनसुइया गैया वहां निकली ॥२१॥

दूध पिया मां रूप में आके । घबराया ग्वाला वहां जाके ॥२२॥

मां की लीला सब पहचाना । पाया उसने वहींं ठिकाना ॥२३॥

सारा भेद राजा को बताया । ज्वालाजी मंदिर बनवाया ॥२४॥

चंडी मां का पाठ कराया । हलवे चने का भोग लगाया ॥२५॥

कलयुग वासी पूजन कीना । मुक्ति का फल सबको दीना ॥२६॥

चौंसठ योगिनी नाचें द्वारे । बावन भैरों हैं मतवारे ॥२७॥

ज्योति को प्रसाद चढ़ावें । पेड़े दूध का भोग लगावें ॥२८॥

ढोल ढप्प बाजे शहनाई । डमरू छैने गाएं बधाई ॥२९॥

तुगलक अकबर ने आजमाया । ज्योति कोई बुझा नहीं पाया ॥३०॥

नहर खोदकर अकबर लाया । ज्योति पर पानी भी गिराया ॥३१॥

लोहे की चादर थी ठुकवाई । जोत फैलकर जगमग आई ॥३२॥

अंधकार सब मन का हटाया । छत्र चढ़ाने दर पर आया ॥३३॥

शरणागत को मां अपनाया । उसका जीवन धन्य बनाया ॥३४॥

तन मन धन मैं करुं न्यौछावर । मांगूं मां झोली फैलाकर ॥३५॥

मुझको मां विपदा ने घेरा । काम क्रोध ने लगाया डेरा ॥३६॥

सेज भवन के दर्शन पाऊं । बार-बार मैं शीश नवाऊं ॥३७॥

जै जै जै जगदम्ब ज्वालपा । ध्यान रखेगी तू ही बालका ॥३८॥

ध्यानु भगत तुम्हारा यश गाया । उसका जीवन धन्य बनाया ॥३९॥

कलिकाल में तुम वरदानी । क्षमा करो मेरी नादानी ॥४०॥

शरण पड़े को गले लगाओ । ज्योति रूप में सन्मुख आओ ॥४१॥

।। दोहा ।।

रहूं पूजता ज्वालपा जब तक हैं ये स्वांस ।

“ओम” को दर प्यारा लगे तुम्हारा ही विश्वास ॥

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श्री ज्वाला चालीसा Jwala Chalisa

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