।। दोहा ।।

बंशी शोभित कर मधुर, नील जलद तन श्याम ।

अरुण अधर जनु बिम्बफल, नयन कमल अभिराम ॥

पूर्ण इन्द्र, अरविन्द मुख, पीताम्बर शुभ साज ।

जय मनमोहन मदन छवि, कृष्णचन्द्र महाराज ॥

।। चौपाई ।।

जय यदुनन्दन जय जगवन्दन । जय वसुदेव देवकी नन्दन ॥

जय यशुदा सुत नन्द दुलारे । जय प्रभु भक्तन के दृग तारे ॥

जय नट-नागर नाग नथैया । कृष्ण कन्हैया धेनु चरैया ॥

पुनि नख पर प्रभु गिरिवर धारो । आओ दीनन कष्ट निवारो ॥

वंशी मधुर अधर धरी तेरी । होवे पूर्ण मनोरथ मेरो ॥

आओ हरि पुनि माखन चाखो । आज लाज भारत की राखो ॥

गोल कपोल, चिबुक अरुणारे । मृदु मुस्कान मोहिनी डारे ॥

रंजित राजिव नयन विशाला । मोर मुकुट वैजयंती माला ॥

कुण्डल श्रवण पीतपट आछे । कटि किंकणी काछन काछे ॥

नील जलज सुन्दर तनु सोहे । छवि लखि, सुर नर मुनिमन मोहे ॥10

मस्तक तिलक, अलक घुंघराले । आओ कृष्ण बांसुरी वाले ॥

करि पय पान, पुतनहि तारयो । अका बका कागासुर मारयो ॥

मधुवन जलत अग्नि जब ज्वाला । भै शीतल, लखितहिं नन्दलाला ॥

सुरपति जब ब्रज चढ़यो रिसाई । मसूर धार वारि वर्षाई ॥

लगत-लगत ब्रज चहन बहायो । गोवर्धन नखधारि बचायो ॥

लखि यसुदा मन भ्रम अधिकाई । मुख महं चौदह भुवन दिखाई ॥

दुष्ट कंस अति उधम मचायो । कोटि कमल जब फूल मंगायो ॥

नाथि कालियहिं तब तुम लीन्हें । चरणचिन्ह दै निर्भय किन्हें ॥

करि गोपिन संग रास विलासा । सबकी पूरण करी अभिलाषा ॥

केतिक महा असुर संहारयो । कंसहि केस पकड़ि दै मारयो ॥20

मात-पिता की बन्दि छुड़ाई । उग्रसेन कहं राज दिलाई ॥

महि से मृतक छहों सुत लायो । मातु देवकी शोक मिटायो ॥

भौमासुर मुर दैत्य संहारी । लाये षट दश सहसकुमारी ॥

दै भिन्हीं तृण चीर सहारा । जरासिंधु राक्षस कहं मारा ॥

असुर बकासुर आदिक मारयो । भक्तन के तब कष्ट निवारियो ॥

दीन सुदामा के दुःख टारयो । तंदुल तीन मूंठ मुख डारयो ॥

प्रेम के साग विदुर घर मांगे । दुर्योधन के मेवा त्यागे ॥

लखि प्रेम की महिमा भारी । ऐसे श्याम दीन हितकारी ॥

भारत के पारथ रथ हांके । लिए चक्र कर नहिं बल ताके ॥

निज गीता के ज्ञान सुनाये । भक्तन ह्रदय सुधा वर्षाये ॥30

मीरा थी ऐसी मतवाली । विष पी गई बजाकर ताली ॥

राना भेजा सांप पिटारी । शालिग्राम बने बनवारी ॥

निज माया तुम विधिहिं दिखायो । उर ते संशय सकल मिटायो ॥

तब शत निन्दा करी तत्काला । जीवन मुक्त भयो शिशुपाला ॥

जबहिं द्रौपदी टेर लगाई । दीनानाथ लाज अब जाई ॥

तुरतहिं वसन बने ननन्दलाला । बढ़े चीर भै अरि मुँह काला ॥

अस नाथ के नाथ कन्हैया । डूबत भंवर बचावत नैया ॥

सुन्दरदास आस उर धारी । दयादृष्टि कीजै बनवारी ॥

नाथ सकल मम कुमति निवारो । क्षमहु बेगि अपराध हमारो ॥

खोलो पट अब दर्शन दीजै । बोलो कृष्ण कन्हैया की जै ॥40

।। दोहा ।।

यह चालीसा कृष्ण का, पाठ करै उर धारि।

अष्ट सिद्धि नवनिधि फल, लहै पदारथ चारि॥

कृष्ण चालीसा हिंदी में पढ़े - कृष्ण चालीसा

श्री कृष्ण चालीसा Krishna Chalisa

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