।। चौपाई ।।
आध्यक्षति हर्षिद्धि में, विश्व में माँ सबसे समाई।
त्रिलोक शंख सुर ने जीता, ब्रह्मा, हरि, हर ने बिनती गाई।
शुम्भ-बिज रक्त दानव मारे, चक्र-मुंड धूम्र लोचन हारे।
महिषासुर अभिमानी मारा, त्रिलोक का भार उतारा।
नेत्रों से गिरि आश्रय मिटाया, मदन सोनी ने लक्ष्मी बरसाया।
सागर में जगदुश ने पुकारा, वाहनों सहित माँ ने उगारा।
वेद-पुराण और शास्त्र थके, ज्ञानी मर्कंड वशिष्ठ झुके।
चरणों में पूजन मर्कंड ने किया, तम अभय शरण माँ ने दिया।
तब वेद ऋषि आश्रम पहुंचे, मेघ ऋषि को कर्म कथा सुनाई।
मेघ ने चंडी पाठ सुनाया, मंत्र सहित उपासना सिखाई।
देवों ने माँ से वरदान पाया, अभय चरणों में सुखदाई पाया।
विद्या से विद्यार्थी की रक्षा हो, सुहागिन के भाल सिंदूर सुहाए।
कुमारी को इच्छित वर मिल जाए, दाकिनी-साकिनी भूत भाग जाए।
नित्य वंदन कर सिंदूर लगाए, निर्धन भी धनवान हो जाए।
दीप जलाकर माँ को प्रसन्न करें, अब दर्शन दो विलंब न धरें।
आधि-व्याधि-उपाधि मिटाओ, हर्षिद्धि माँ, मुझ पर कृपा लाओ।
जिस पर हर्षिद्धि की कृपा हो, चिंतन से उसका सर्वस्व हो।
कृपा करो, माँ महाराजनी, सिद्ध कर दो, हे अंबे रानी।
शरीर रोग और ऋण हटाएं, जो पथ करें, सौ बार सुनाएं।
माँ चिंतन से ऋण विमोचन हो, माँ शरण में सब सुखदाई हो।
“ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्री हर्षिद्धि देवाय नमः।”