।। चौपाई ।।

ॐ नमो गुरुदेवजी, सबके सरजन हार ।

व्यापक अंतर बाहर में, पार ब्रह्म करतार ।

देवन के भी देव हो, सिमरुं मैं बारम्बार ।

आपकी किरपा बिना, होवे न भव से पार ।

ऋषि-मुनि सब संत जन, जपें तुम्हारा जाप ।

आत्मज्ञान घट पाय के, निर्भय हो गये आप ।

गुरु चालीसा जो पढ़े, उर गुरु ध्यान लगाय ।

जन्म-मरण भव दुःख मिटे, काल कबहुँ नहीं खाय ।

गुरु चालीसा पढ़े-सुने, रिद्धि-सिद्धि सुख पाय ।

मन वांछित कारज सरें, जन्म सफल हो जाय ।

ॐ नमो गुरुदेव दयाला, भक्तजनों के हो प्रतिपाला ।

पर उपकार धरो अवतारा, डूबत जग में हंस1 उबारा ।

तेरा दरश करें बड़भागी, जिनकी लगन हरि से लागी ।

नाम जहाज तेरा सुखदाई, धारे जीव पार हो जाई ।।

पारब्रह्म गुरु हैं अविनाशी, शुद्ध स्वरूप सदा सुखराशी ।

गुरु समान दाता कोई नाहीं, राजा प्रजा सब आस लगायी ।

गुरु सन्मुख जब जीव हो जावे, कोटि कल्प के पाप नसावे ।

जिन पर कृपा गुरु की होई, उनको कमी रहे नहीं कोई ।

हिरदय में गुरुदेव को धारे, गुरु उसका हैं जन्म सँवारें ।

राम-लखन गुरु सेवा जानी, विश्व-विजयी हुए महाज्ञानी ।

कृष्ण गुरु की आज्ञा धारी, स्वयं जो पारब्रह्म अवतारी ।

सद्गुरु कृपा अति है भारी, नारद की चौरासी टारी ।

कठिन तपस्या करें शुकदेव, गुरु बिना नहीं पाया भेद ।

गुरु मिले जब जनक विदेही, आतमज्ञान महा सुख लेही ।

व्यास, वसिष्ठ मर्म गुरु जानी, सकल शास्त्र के भये अति ज्ञानी ।

अनंत ऋषि मुनि अवतारा, सद्गुरु चरण-कमल चित धारा ।

सद्गुरु नाम जो हृदय धारे, कोटि कल्प के पाप निवारे ।

सद्गुरु सेवा उर में धारे, इक्कीस पीढ़ी अपनी वो तारे ।

पूर्वजन्म की तपस्या जागे, गुरु सेवा में तब मन लागे ।

सद्गुरु-सेवा सब सुख होवे, जनम अकारथ क्यों है खोवे ।

सद्गुरु सेवा बिरला जाने, मूरख बात नहीं पहिचाने ।

सद्गुरु नाम जपो दिन-राती, जन्म-जन्म का है यह साथी।

अन्न-धन लक्ष्मी जो सुख चाहे, गुरु सेवा में ध्यान लगावे ।

गुरुकृपा सब विघ्न विनाशी, मिटे भरम आतम परकाशी ।

पूर्व पुण्य उदय सब होवे, मन अपना सद्गुरु में खोवे ।

गुरु सेवा में विघ्न पड़ावे, उनका कुल नरकों में जावे ।

गुरु सेवा से विमुख जो रहता, यम की मार सदा वह सहता ।

गुरु विमुख भोगे दुःख भारी, परमारथ का नहीं अधिकारी ।

गुरु विमुख को नरक न ठौर, बातें करो चाहे लाख करोड़ ।

गुरु का द्रोही सबसे बूरा, उसका काम होवे नहीं पूरा ।

जो सद्गुरु का लेवे नाम, वो ही पावे अचल आराम ।।

सभी संत नाम से तरिया, निगुरा नाम बिना ही मरिया ।

यम का दूत दूर ही भागे, जिसका मन सद्गुरु में लागे ।

भूत, पिशाच निकट नहीं आवे, गुरुमंत्र जो निशदिन ध्यावे ।

जो सद्गुरु की सेवा करते, डाकन-शाकन सब हैं डरते ।।

जंतर-मंतर, जादू-टोना, गुरु भक्त के कुछ नहीं होना ।

गुरू भक्त की महिमा भारी, क्या समझे निगुरा नर-नारी ।

गुरु भक्त पर सद्गुरु बूठे2, धरमराज का लेखा छूटे ।

गुरु भक्त निज रूप ही चाहे, गुरु मार्ग से लक्ष्य को पावे ।

गुरु भक्त सबके सिर ताज, उनका सब देवों पर राज ।

।। दोहा ।।

यह सद्गुरु चालीसा, पढ़े सुने चित्त लाय ।

अंतर ज्ञान प्रकाश हो, दरिद्रता दुःख जाय ।।

गुरु महिमा बेअंत है, गुरु हैं परम दयाल ।

साधक मन आनंद करे, गुरुवर करें निहाल ।

गुरु चालीसा हिंदी में पढ़े - गुरु चालीसा

श्री गुरु चालीसा Guru Chalisa

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