।। चौपाई ।।

प्राचीन शास्र पुराण से मिलता अगर भविज्ञान

सुसंस्कार जीवात्मा को कैसे करे आह्वान

अच्छे विचार, उत्तम विहार और वाणी व्यवहार

पति पत्नी मिलकर करें गर्भाधान संस्कार

दंपति चाहे गर्भधारण करें, करि कर बाधन मंत्र उच्चारण

महावारी के दशवे दिन से महावारी के बीसवे दिन तक

देव दर्शन और स्नानाधि, कुमकुम अक्षत जल और हल्दी

पुष्प तिलक श्री फलमालादि करना गर्भ की पूजा विधि

इंद्र प्रजापति सरस्वती, अग्नि देव और विष्णु आदि

आशीर्वाद देव दे सारे, स्वस्थ बीजमा गर्भ पधारे

पोषण पाए शिशु जो गर्भित, नव माह तक रहे सुरक्षित

हमें ऐसी संतान दो ईश्वर, बल बुद्धि आयु हो बेहतर

कलश दीप का करके स्थापन, विवरण नद शुभ दीप जलावन

मंगल चरण सब मिलके गावन, आशीष देते सब स्नेहीजन

गर्भधन के बाद हैं माता, कहते हैं सब ज्ञानी ज्ञाता

पारिचार्य का पालन करके, गर्भ शिशु की रक्षा करना

पौष्टिक सात्विक भोजन करना, योग प्राणायाम अभ्यास करना

वस्त्र आभूषण रत्न धारण, गृह नक्षत्र अनुरूप करना

रुचिकर संगीत सुनो तुम, चित्र रंग अच्छे देखो तुम

शुद्ध हवा मिलती हो जहाँ पर, विहार करले माता वहाँ पर

औषधि नासिकरण और चलाना, घात-आघात से सदा संबलना

सूक्ष्म जीवों से गर्भ की रक्षा, सोच समझ के खाना पीना

सुदृढ़ शरीर निर्मल मन हो, तन मन अपना सदा प्रसन्न हो

धर्म कथा और प्रेरक कथा, नित्य हृदय प्रभु के दर्शन हो

प्रथम माह से हो बीज संयोगन, गर्भविकास का प्रारंभ होता

शरीर माता का पुष्ट हो जाता, आनंद मुख पर छलकने लगता

द्वितीय मास पंचतत्व बनता, गर्भ में शिशु की होती रचना

निर्माण क्रिया में वेग आता, शिशु आकारित बनने लगता

तृतीय मास संस्कार प्रतीका, पंचपिंड धीरे-धीरे खिलता

आंख, कान और हाथ-पांव सह, सूक्ष्म रूप से दिखने लगता

चतुर्थ माह में शिशु हृदय बनता, गर्भ थोड़ा हिलता डुलता

माता गर्भ का मिलन होता, गर्भ माता नाभि से जुड़ता

पंचम मास से श्रवण क्रिया हो, मंत्र उच्चारण की विधि हो

माता-पिता जो कुछ भी बोलें, गर्भ शिशु प्रतिक्रिया में डोले

षष्ठ मास ओजस आता, मन-बुद्धि का विकास होता

कायाकल्प होने लगता, शिशु स्वयं सवारने लगता

सप्तम माह से श्रीमत नयन हो, संस्कारों और रिवाजों से संपन्न हो

इष्ट देव से करें प्रार्थना, शिशु स्वस्थ और गुण संपन्न हो

अष्टम माह से ओज आना जाता, थकान महसूस करती माता

बोज़ गर्भ का बढ़ता जाता, आराम चाहती है अब माता

नवम माह ओज स्थिर हो जाता, रक्षा सूत्र बंधा जाता

पूर्णतः गर्भ विकसित होकर, प्रसन्न हो मुँह पर आ जाता

गर्भाधान की सारी बातें, अच्छी तरह समझ में लाकर

पारिचार्य का पालन करके, स्वस्थ निरोगी शिशु पाते

प्राचीन ऋषियों ने खोजा है, गर्भ विज्ञान का मूल

इस विज्ञान को अनुसारे, वो पाए संतान की फूल

यह गर्भ चालिसा है, जो गर्भधारण के समय माता-पिता को शुभ आशीर्वाद और अच्छे संस्कार देने का मार्गदर्शन करता है।

गर्भ चालीसा हिंदी में पढ़े - गर्भ चालीसा

श्री गर्भ चालीसा Garbh Chalisa

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