।। दोहा ।।

ध्यान भारत देश, गुरु को करें ध्याऊं।

सुमिरन से मिटे संकट, सभी क्लेश छाँटू।।

जन्म-मरण के चक्र से, तारो प्रभु अमिताभ।

करुणा सागर दीजिए, गुण-बुद्धि विद्या लाभ।।

।। चौपाई ।।

जय जय बुद्ध करुणा के सागर, शील विनय वात्सल्य के आगर।

करुणाशील प्रजा हितकारी, कपिलवस्तु के राजा भारी।।

पिता शुद्धोधन, मातु थी माया, शाक्य वंश में जन्म है पाया।

जदपि तीव्र थे अति तन मन से, वीतराग था बालक पन से।।

देखा नृप ने कि यह बालक, अति भावुक दुखियन पालक।

कैसे राज का काज करेगा, समर में क्यों तलवार गहेगा।।

तब उसका ह्रदय लुभाने को, माया में उसको लाने को।

राजा ने पुत्र विवाह किया, सुख-सुविधा और विलास दिया।।

एक रोज़ चढ़ के स्पंदन, करने गए रात का भ्रमण।

बूढ़ा रोगी और दुखारी, मिले मार्ग में बारी-बारी।।

देख दशा मन हुआ विरागी, भोग विलास औ माया त्यागी।

इतना दुख है यहु संसार, कस जीव आवे बारम्बार।।

राजकाज निज पुत्र और नारी, छोड़ के अपनी संपत्ति सारी।

महल सवारी छोड़ के उपवन, जंगल के दिक किया पलायन।।

वनका मध्य निरंजन तीरे, करी तपस्या क्षीण शरीरे।

वन में बोधि वृक्ष के नीचे, ध्यान निरत थे आँखें मीचे।।

भई जीर्णता जब अधिकाई, नारी सुजाता खीर खिलाई।

हुआ प्राप्त उन्हें ज्ञान वहाँ, मध्यम मार्ग रहे अति सुंदर।।

न अति कोमल न अति भारी, मध्यम मार्ग अधिक हितकारी।

स्वयं काम कींहा अवरोध, क्यों कर हारे सच्चा जोधा।।

सारनाथ है काशी देशा, दिया बुद्ध प्रथम उपदेशा।

त्याग गए कहे के तप भ्रष्टा, हुए पांच प्रथम दिकदृष्टा।।

प्रथम बार उपदेश सुनाया, धर्म चक्र प्रवर्तन कहलाया।

सभी मनुज हैं एक बराबर, जात पात का मिथ्या चक्कर।।

यह दुनिया है दुख की नदी, पाया है जिसने जन्म लिया।

पुनि पुनि जनम लिए या जग मा, जो नर यहाँ करें दुष्कर्मा।।

सुरासुंदरी बुरा आचरण, मद विलासिता मोह की डोरी।

झूठ बोलना क्रोध और चोरी, जन्म मरण का चक्र है भीषण।।

इसमें फंस दुख सहता है जन, कर्मकांड, पशुबलि, नरबलि पाप।

व्यर्थ रक्तांजलि गया दूत, नृप का अनुरागी पा उपदेश।।

हुआ गृह त्यागी जो कोऊ, सुने बुद्ध उपदेश सुख पावत।

औ कटे कलेशा लौट के प्रभु, जब नगरी आए आसन बाहर।।

कोट रमाए कोशलपति संग, मित्र और भाई हुआ प्रसन।

जित प्रभु अनुयाई नृप अशोक, था अपनाया तीनों लोक प्रताप।।

पंहुचे अजितशत्रु के आंगन, की बलि राजा के प्रांगण।

अंगुलिमाल को मार्ग दिखाया, दस्यु से इंसान बनाया।।

करके अपना जीवन अर्पण, मुक्ति का खोजा साधन।

अंत में मल्ल किया प्रस्थान, पाया कुशीनगर निर्वाण।।

बाण अश्वघोष नागार्जुन, किए हैं बुद्ध चरित का वंदन।

।। दोहा ।।

गोपा स्वामी कीजिए, प्रभु मम हृदयालोक।

जेहि विधि दुनिया से तरे, हर्ष कनिष्क अशोक।।

श्री गौतम बुद्ध चालीसा

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श्री गौतम बुद्ध चालीसा Gautam Budha Chalisa

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