।। दोहा ।।

भक्तामर भक्ति भरा, मानतुंग का रूप,

आदिनाथ को है नमन्, भक्ति भाव स्वरूप |

भक्तामर के पठन से, सर्वशांति होय,

संकट बाधा दूर हो, मन भी निर्मल होय ।

।। चौपाई ।।

आदिनाथ को मन में धरके, कष्ट मिटेंगे सारे जग के।

संकटहारी नाम है इसका, पुण्य मिले भारी जिसका ।

भक्ति रस का भरा है किस्सा, भव्यजनों ने लिया है हिस्सा ।

मानतुंग की ऐसी रचना, सारे जग की करती रचना ।

काव्य करिश्मा देखा इसका, घर में पाठ कराओ इसका ।

ईसा की सदी ग्यारहवीं थी, उज्जैनी वह पुण्यपुरी थी ।

मालवा प्रान्त बड़ा ही सुन्दर, विद्वानों का ज्ञान समुन्दर ।

राजा भोज ही शासन करते, कालीदास जी मंत्री रहते ।

इक दिन सेठ सुदत्त भी जाकर, नृप को नमता राज्य में आकर ।

उसका पुत्र मनोहर प्यारा, राज्य सभा में सबसे न्यारा ।

राजा भोज ने प्रतिभा देखी, मनोहर की बुद्धि को लेखी ।

नाममाला की बात चलायी, कवि धनंजय कृति बतायी ।

पर्यायवाची नाम बताये, शब्दों का भण्डार दिखायें।

राजा भोज थे बुद्धिशाली, करि प्रशंसा कृति निराली ।

कालीदास जी थे अभिमानी, उन्हें प्रशंसा नहीं सुहानी ।

मानतुंग जी ज्ञानी ध्यानी, कालीदास शास्त्रार्थ की ठानी।

राजा भोज ने दूत को भेजा, मानतुंग को आज्ञा लेखा ।

नगर उद्यान में गुरु विराजे, सौम्य रवि से मुनिवर साजे ।

दूत ने जा संदेश सुनाया, राजा भोज ने शीघ्र बुलाया ।

दूत निराशा लेकर आया, फिर राजा सेवक भिजवाया ।

चार बार तो दूत भेजा था, फिर भी मन ये नहीं डिगा था ।

कालीदास ने क्रोध बढ़ाया, राजा भोज को बहु भड़काया ।

राजा भोज ने क्रोध में आकर, बंदी बनाया उद्यान में जाकर ।

राज्य सभा में पेश किया है, मुनिवर ने भी मौन लिया है।

कालीदास ने मूर्ख कहा फिर, मानतुंग ने ध्यान किया फिर ।

अड़तालीस ताले के अन्दर, मुनिवर डूबे ज्ञान समुन्दर ।

सारी नगरी शोर मचाती, दुःख के आंसू रोज बहाती ।

तीन दिनों तक बन्द रहे थे, भक्ति रस में डूब रहे थे ।

आदिनाथ का ध्यान लगाया, भक्तामर का पाठ रचाया।

तड़-तड़ ताले टूट गये थे, बंधन सारे छूट गये थे ।

हथकड़ियां भी दूर फिकी थी, बन्दीगृह से दूर दिखी थी।

दरवाजे सब खुलते गये थे, मानतुंग बाहर पहुंचे थे ।

द्वारपाल भी डरकर भागे, राजा भोज के पहुंचे आगे ।

फिर राजा ने बन्दी बनवाया, गुनिवर फिर जेल भिजवाया ।

कैदी के सम मानतुंग थे, मानतुंग तो महासंत थे।

राज्य सभा में पहुंचे मुनिवर, राजा भोज को लगता है डर ।

सिंहासन भी कम्पन होता है, तड़-तड़ करके अतिशय होता ।

कालीदास को फिर बुलवाया, राजा भोज ने भय दिखलाया ।

कालीदास देवी बुलवाई, कालिका देवी ही प्रकटराई ।

चक्रेश्वरी भी आन पधारी, जैन धर्म महिमा दिखलाई।

चालीसा अतिशय भरा, सर्व अशान्ति खोए ।

भक्तामर के काव्य से, पल-पल अतिशय होय ।

आदिनाथ स्तोत्र ये भक्ति भाव भरा,

अलंकारमय काव्य है मानों यहीं धरा |

नानाभाषा में रचा, स्तुति करते लोग,

एक बार जो नित पढ़े, तुरतहि हरते रोग ।

।। दोहा ।।

आधि व्याधि नाशक है, यह चालीस पाठ ।

मंत्रों की महिमा भरी, बन जाते जो ठाठ ।

निर्णय सागर मम गुरु जिनवाणी का ज्ञान ।

सदा-सदा नमता यहां, बन जाऊँ विज्ञान |

भक्तामर चालीसा हिंदी में पढ़े - भक्तामर चालीसा

श्री भक्तामर चालीसा Bhaktamar Chalisa

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