बिमल विभूति बूढ़ वरद बहन से,
लम्बे-लम्बे लट लटकावे बाबा बासुकी ॥ १ ॥
काल- कूट कंठ शोभे नील बरनवां से,
लाले लाले लोचन घुमाव बाबा ॥२॥
ऐसन कलेवर बनाये देहो नागेश्वर,
देखि जन महिमा लोभावे बाबा बासुकी ॥ ३ ॥
अन्धे पावे लोचन विविध दुःख मोचन से,
कोडिया सुन्दर तन पावे बाबा बासुकी ॥ ४ ॥
निपुत्र के पुत्र देत कुमति-सुमति देत,
निर्धन के करत निहाल बाबा बासुकी ॥ ५ ॥
धन्य धन्य दारूक बन जहाँ बसे आप हर,
भेट देत विधि अंक भाल बाबा बासुकी ॥ ६ ॥
परम आरत हूँ मैं सुख शांति सब खोई,
तेरे द्वार भिक्षा मांगन आये बाबा बासुकी ॥ ७ ॥
कहत साधकगण मेरी बेरी काहे,
हर करूणा करत नहिं आवे बाबा बासुकी ॥ ८ ॥
सबके जे सुनिसुनि दूर कैले दुःख सब,
हमरा के बेरिया मिठुर बाबा बासुकी ॥ ९ ॥
कहि कहि कहु अब कहाँ कहाँ जाऊँ नाथ,
अनाथ के नाथ कहेले बाबा बासुकी ॥ १० ॥
देवघर देवलोक देव धन्य महादेव,
उहे जो हुकुम कइला जाहू बाबा बासुकी ॥ ११ ॥
तुम बिन अब कोई दृष्टि पथ आवे नाहीं,
केहि अब अरज सुनाऊँ बाबा बासुकी ॥ १२ ॥
सुनै छलियन बासुकीनाथ छबि बड़ दानी बाबा,
अब किये एहन निठुर बाबा बासुकी ॥ १३ ॥
मातु पिता परिजन सवके छोड़लो हम,
अहिं के शरण अब धईलों बाबा ॥ १४ ॥
शरण यहाँ के हम सतत जे धईलीं बाबा,
अब अहाँ तजि कहाँ जाऊँ बाबा ॥ १५ ॥
आशुतोष पार्क दीनानाथ दीनबन्धु,
आरती हरण नाम अछि बाबा बासुकी ॥ १६ ॥
कृपा के कटाक्ष दये एक हेरू हर,
दुःखिया के संकट हरहु बाबा बासुकी ॥ १७ ॥
हमहूँ जे अईली शरण में अहां के बाबा,
हमरा के देखि के डरेला बाबा बासुकी ॥ १८ ॥
जाहि दिन से ज्ञान भईल हमरा के अब बाबा,
ताहि दिन से शरण धइली बाबा बासुकी ॥ १९ ॥
जाहि दिन से शरण अहाँ के हम धइलों बाबा,
हृदय के बात सब सुनैलों बाबा बासुकी ॥ २० ॥
॥ ग्राम देव ग्राम लोक ग्राम धन महादेव,
– सेहो न सुनैलों दुःख मोर बाबा बासुकी ॥ २१ ॥
कहत भक्तगण दुहु कर जोरी बाबा,
निपुत्र के पुत्र अब देहु बाबा बासुकी ॥ २२ ॥
कहत सेवकगण दुहु कर जोरी बाबा,
दुःखिया के दुःख हरहु बाबा बासुकी ॥ २३ ॥
कहत विनय करि देश के सेवक बाबा,
“भारत के संकट हरहु बाबा बासुकी ॥ २४ ॥