।। दोहा ।।

श्री दाऊजी चालीसा विपति हरन मंगल करन, सारत जन के काज।

जयति जयति जय जयति जय दाऊजी महाराज।।

।। चौपाई ।।

जय बलभद्र शेष अवतारी। दीनदयाल भक्त हितकारी।।

शेष रूप धारौ महि भारा। सन्तन हेतु लीन्ह अवतारा।।

रोहिणी उदर जन्म प्रभु लीन्हों। नन्द यशोदा को सुख दीन्हों।।

जय वसुदेव रोहिनी नन्दन। जय यदुकुल चंदन जगवंदन।।

गौर वर्ण तन गिरा गंभीरा। सर सोहे पचरंगी चीरा।।

नीलाम्बर तन लखत सुहावन। भाल तिलक त्रियं ताप नसावन।।

भ्रकुटी कुटिल नैन रतनारे। कुन्डल श्रवन लसत मतवारे।।

ठोढ़ी पै हीरा द्युतिकारी। कोमल कर हल मूसल धारी।।

नितनव साज सजत छवि छाजै। सेवा में रेवती विराजै।।

सुघर क्षीर सागर तट धामा। चरित करत नव लीक ललामा।।

माखन मिसिरी भोग तिहारौ। सदा नाथ संतन पन पारौ।।

बालचरित कीन्हे सुखकारी। मोह लिये व्रज के नर-नारी।।

धेनक असुर खेल करि मारयो। महाबली प्रलम्ब संहारयो।।

धनुष यज्ञ जब कंस रचायो। कृष्ण सहित तब तुमहि बुलायो।।

मुष्टिक मल्ह महा गरवीला। ताहि पछारि करी शिशुलीला।।

जरासिन्धु जब लड़ी लराई। बाँध लो तुमने बलदाई।।

गदा युद्ध के तुम आचारी। प्रभुता जग विख्यात तिहारी।।

दुर्योधन कीन्हो दुर्वादा। भयो तुमहि अति क्रोध विषादा।।

तब सकोप हल हाथ उठायो। हल सो गजपुर को उकसायो।।

नगर हस्तिनापुर सब डोला। कुरूपति विनय सहित तब बोला।।

साम्ब ब्याहि द्वारावति आये। यदुबंशन आनंद मनाये।।

जन सुत ऋषि मन अभिमाना। कुश धरिशीश लये हरि प्राना।।

वैशम्पायन को वर दीयो। चित्त प्रसन्न ऋषिन को कीयो।।

हन्यो द्विविद बानर बलधारी। ऋषि मुनि सुर सब किये सुखारी।।

हि को कृपा कटाक्ष निहारौ। भरे सकल सुखको भंडारौ।।

ध्यावै तुमहि सहित विश्वासा। ताकि होय पूर्ण सब आशा।।

दुर्लभ वस्तु जगत मे जोई। सुमिरत तुमहिं सुलभ सो होई।।

प्रेम सहित जो ध्यान लगावै।। गौधन धन मन मानो पावै।।

कृषक भजे तुमको चितलाई। उपजे खेत अन्न अधिकाई।।

कोढ़िन की करि कन्चन काया। निर्धन भवन भरत तुम माया।।

पावँ बाँझ नारि सुत नीको। तुम सम कौन सहाय दुखी को।।

जन प्रति पालक संत सहायक। शक्तिमान समरथ सब लायक।।

निर्बल के बलराम कहावौ। जन पुकार सुनि आतुर धावौ।।

तुम अनंत प्रभु अन्तर्यामी। वेगि हरहु मम संकट स्वामी।।

हाँ बालक विमूढ़ मति मुंदा। काटहु नाथ भरम भवफंदा।।

जैसे भक्त अनेक उबारे। तैसेहि सारो काज हमारे।।

देव दयालु न आप समाना। जग में हीन न मो सम आना।।

दाऊदयाल विरज के राजा। हो दयाल अब सारौ काजा।।

सेवक विनय करै कर जोरे। पुरवहु नाथ मनोरथ मोरे।।

मौपै करहु प्रेम परतीती। देउ भक्ति भक्तन की प्रीती।।

।। दोहा ।।

यह चालीसा जो पढ़ें, चित पवित्र सतवार। पावै परम “विचित्र” वह सम्पत्ति सुक्ख अपार।।

दाऊदाऊ सब कहें, मइया कहे न कोय। दाऊ के दरबार में, मइया कहे सो होय।।

सेवा से फल देत हैं, जितने हैं सब देव। दर्शन से फल देत हैं, भ्राता श्री बल्देव।।

सब द्वारन को छोड़कर आए तेरे द्वार। हे रोहिणी के लाड़ले, नैक मेरी ओर निहार।।

मन, वाणी और कर्म से जिते पाप जग मांहि। तेते श्री बल्देव के नाम लिए मिट जाय।।

“मैं मझधार हूं पार कर, वेद न पावैं भेद। असुर हरण मंगल करण, बाबा श्री बल्देव ||

बालराम चालीसा हिंदी में पढ़े - बालराम चालीसा

श्री बलराम चालीसा Balram Chalisa

Download Balram Chalisa PDF