श्री बाबा मोहन राम जी की !! चालीसा !!
।। चौपाई ।।
जै मन मोहन जग विख्याता। दीन दुखियों के तुम हो दाता।।
तुम्हरो ध्यान सभी जन धरते। तुम रक्षा भक्तों की करते।।
काली खोली बास तुम्हारा। करे सभी जग का निस्तारा।।
ज्योति गुफा में प्यारी जलती। दूर-दूर से दुनिया आती।।
राजिस्थान मिलकपुर ग्राम। सुन मोहन का सुन्न धाम।।
यहां पर जन आ करे बसेरा। हर दम मारे मोहन फेरा।।
ज्योति में ज्योति मिलाओ मन की। निस दिन सेवा कर मोहन की।।
जो कोई करत मन से सेवा। मोहन पार लगावे खेवा।।
अब सुनो सुनाओ मोहन गाथा। नर और नारी रगड़े माथा।।
सेवा यही हृदय से धर लो। सबको छोड़ बाप एक कर लो।।
पागल भी आ रज में लेटे। बांझ नार को दे रहे बेटे।।
ऐसे मोहन भोले भाले। दुखियों के दुःख हरने वाले।।
कोढ़िन को वो देते काया। निर्धन को भर देते माया।।
अंतरयामी मोहन राम। अड़े समारे सबके काम।।
भूत-प्रेत निकट नहीं आवे। मोहन नाम सुनत भग जावे।।
घी की ज्योति जले दिन बांकी। मंदिर में मोहन के झांकी।।
सीता फल की गहरी छाया। सोरन कर दई कोढ़िन काया।।
और सुनो मोहन करतूत। साठ साल की ले रही पूत।।
नर नारी आ खाबे खींचर। चुग रहे चुग्गा मोर कबूतर।।
परबत ऊपर बढ़ लहरावे। दरश करत जन अति सुख पावे।
प्रेम भक्ति से जो तुम्हें ध्यावे। दुःख दारिद्र निकट नहीं आवे।।
मैं मनमोहन दीन घनेरो। तुम बिन कौन हरे दुःख मेरो।।
काम क्रोध मद लोभ न सतावे। रिपु मन मोह अति भरमावै।।
करुऊ कृपा मम खोली वाला। दास जान मोह करो निहाला।।
जब तक जीऊ दरश मेरो पाऊं। निस दिन ध्यान चरन रज खाऊं।।
कलयुग मैं तेरी कला सवाई। कथी न जाय तेरी प्रभुताई।।
तेरी अजब निराली भान। सत बुद्धि दो मोहन आन।।
हरदम सेवा करूं तुम्हरी। धुप दीप नेवेद्य पान सुपारी।।
रोम रोम में मोहन राम। स्वास स्वास में तुम्हारा नाम।।
मैं अति दीन गरीब दुखकारी। हरो कलेश भय भंजन भारी।।
नित्य प्रति पांच पाठ कर भाई। लोक लाज करि सब देओ भुलाई।।
मेहन चालीसा पढ़े पढ़ावे। अंत समय मोक्ष पद पावे।।
पीछे ना कोई रहे कलेश। सीधा पहँुचे मोहन देश।।
अब भी मूरख कर कुछ चेत। अपने उर में मोहन देख।।
विनती यही मेरी अरदास। मुझे बना लो अपना दास।।
निस दिन सेवा चाहूँ। जनम जनम ना नाम भुलाऊं।।
तेरी भक्ति करो हमेश। मेरी तुम से यही सन्देश।।
मेरी बोझिल जर जर नईया। तुम बिन मोहन कौन खिवैया।।
राधे याम ना चाहे मान। तेरे चरनों में निकले प्रान।।
।। दोहा ।।
ज्योति जले उर भियसती ठंडे बढ़ की छाय
मोहन राम मुंशी रटत हरदम घट से माय
।। इति श्री मोहन राम चालीसा ।।