।। दोहा ।।
गुरु चरणों में सीस धर करुं प्रथम प्रणाम
बखशो मुझ को बाहुबल सेव करुं निष्काम
रोम रोम में रम रहा, रुप तुम्हारा नाथ
दूर करो अवगुण मेरे, पकड़ो मेरा हाथ
।। चौपाई ।।
बालक नाथ ज्ञान भंडारा। दिवस रात जपु नाम तुम्हारा ॥
तुम हो जपी तपी अविनाशी। तुम ही हो मथुरा काशी ॥
तुमरा नाम जपे नर नारी। तुम हो सब भक्तन हितकारी ॥
तुम हो शिव शंकर के दासा। बीच गुफा तुम्हारा वासा ॥
सर्वलोक तुमरा जस गावें। ऋषि मुनि सब नाम ध्यावें ॥
कान्धे पर झोली विराजे। हाथ में सुन्दर चिमटा साजे ॥
सूरज के सम तेज तुम्हारा। मन मंदिर में करे उजारा ॥
बाल रूप धर गऊ चरावे। रत्नों की करी दूर बलायें ॥
अमर कथा सुनने को रसिया। महादेव तुमरे मन बसिया ॥
शाह तलाईयां आसन लाया। शिव भोले का नाम ध्याया ॥
रत्नों का तू पुत्र कहाया। जिमींदारो ने बुरा बनाया ॥
ऐसा चमत्कार तुमने दिखलाया। सबके मन का भ्रम मिटाया ॥
रिद्धि सिद्धि नवनिधि के दाता। मात लोक के भाग विधाता ॥
जो नर तुमरा नाम ध्यावें। जन्म जन्म के दुःख बिसरावें ॥
अन्तकाल जो सिमरण करता। भव सागर से पार उतरता ॥
संकट कटे मिटे सब रोगा। बालक नाथ जपे जो लोगा ॥
लक्ष्मी पुत्र शिव भक्त है प्यारा। बालक नाथ है नाम तुम्हारा ॥
दूधाधारी सिर जटा सुहावै। अंग विभूति तन भस्म रमावे ॥
पौणाहारी बाबा, दूधाधारी। कलयुग के तुम हो अवतारी ॥
अद्भुत तेज प्रताप तुम्हारे। घट-घट की तुम जानन हारे ॥
बाल रूप धरि भक्तन तारे। भक्तन के हैं पाप मिटाये ॥
गोरख नाथ सिद्ध जटाधारी। अजमाने आया तुम्हें पौणाहारी ॥
जब उस पेश गई न कोई। हार मान फिर मित्रता होई ॥
घट घट के अन्तर की जानत। भले बुरे की पीड़ पछानत ॥
सूक्ष्म रूप करे पवन अहारा। पैनाहारी हुआ नाम तुम्हारा ॥
दर पे जोत जगे दिन रैणा। तुम रक्षक भय कोऊँ है ना ॥
भक्त जन जब नाम पुकारा। तब ही उनका दुख निवारा ॥
सेवक करे नित तेरी पूजा। तुम जैसा दानी नहीं दूजा ॥
तीन लोक महिमा तब गाई। गौरख को जब कला दिखाई ॥
बालक नाथ अजय अविनाशी। करो कृपा घट-घट के वासी ॥
तुमरा पाठ करे जो कोई। बन्धन छूट महा सुख होई ॥
त्राहि त्राहि में नाथ पुकारूँ। देहि दर्शन मोहे पार उतारो ॥
लै त्रिशूल शत्रुगण मारे। भक्त जनों के काज संवारे ॥
मात पिता बन्धु और भाई। विपत काल पूछे नहीं काई ॥
दूधाधारी एक आस तुम्हारी। आन हरो अब संकट भारी ॥
पुत्रहीन इच्छा करे कोई। निश्चय नाथ प्रसाद ते होई ॥
बालक नाथ की गुफा न्यारी। रोट चढ़ावे जो नर नारी ॥
ऐतवार व्रत करे हमेशा। घर में रहे न कोई कलेशा ॥
करूँ वन्दना सीस निवाये। नाथ जी रहना सदा सहाये ॥
हम करें गुणगान तुम्हारा। भव सागर करो पार उतारा ॥
बाबा बालक नाथ चालीसा एक 40 पंक्तियों का भक्ति स्त्रोत है, जिसमें बाबा बालक नाथ जी की महिमा और चमत्कारों का वर्णन किया गया है। यह चालीसा भक्तों के बीच विशेष रूप से लोकप्रिय है और इसे श्रद्धा भाव से पढ़ने से जीवन में सुख-शांति और समृद्धि प्राप्त होती है।